हेलो दोस्तों आप सबका स्वागत है हमारे इस आर्टिकल में और आज हम परंपरागत कृषि विकास योजना 2025 के बारे में बात करेंगे, पूरी जानकारी जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा करें.
परंपरागत कृषि विकास योजना की पृष्ठभूमि।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में खेती सिर्फ जीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह संस्कृति और परंपरा से भी जुड़ी हुई है। प्राचीन काल से हमारे किसान पारंपरिक और जैविक तरीकों से खेती करते आए हैं। ये तरीके पर्यावरण के अनुकूल थे और मिट्टी की सेहत भी बरकरार रखते थे। लेकिन हरित क्रांति के बाद बड़े पैमाने पर रासायनिक खाद, कीटनाशकों और हाईब्रीड बीजों का इस्तेमाल बढ़ा, जिससे उत्पादन तो बढ़ा लेकिन मिट्टी की सेहत खराब हो गई।
इससे किसानों की लागत भी बढ़ गई और उनकी कमाई पर असर पड़ा।
इन्हीं समस्याओं को हल करने और जैविक खेती को फिर से मजबूत करने के लिए सरकार ने 2015-16 में परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) की शुरुआत की। अब 2025 में इस योजना को नए तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसमें आधुनिक तकनीक और बाजार की मांग का भी ध्यान रखा गया है।
परंपरागत कृषि विकास योजना का मुख्य उद्देश्य।
PKVY 2025 का सबसे बड़ा मकसद किसानों को रसायनमुक्त खेती की तरफ ले जाना है, जिससे खेती की लागत कम हो, उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर हो और किसानों की आय बढ़े। इसके साथ-साथ यह योजना मिट्टी की सेहत सुधारने, पर्यावरण को सुरक्षित रखने और जैविक उत्पादों की मांग को पूरा करने का माध्यम भी है।
परंपरागत कृषि विकास योजना के मुख्य घटक।
1. क्लस्टर आधारित खेती
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) में क्लस्टर आधारित खेती की जाती है, यानी 20-50 हेक्टेयर का एक क्लस्टर बनाया जाता है, जिसमें कई किसान एक साथ जैविक खेती करते हैं। इससे सामूहिक रूप से जैविक इनपुट्स खरीदने, तकनीकी मदद लेने और बाजार में अपनी पैठ बनाने में आसानी होती है।
2. जैविक प्रमाणीकरण (PGS-India)
किसानों को उनके उत्पाद का PGS-India सर्टिफिकेट मिलता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि उनकी उपज पूरी तरह जैविक है। यह प्रमाणपत्र बाजार में किसानों को बेहतर कीमत दिलाने में मदद करता है।
3. स्थानीय संसाधनों का उपयोग
परंपरागत कृषि विकास योजना में जोर दिया गया है कि किसान रसायनिक खादों और कीटनाशकों की जगह अपने खेत और गांव में उपलब्ध जैविक संसाधनों का ही उपयोग करें। जैसे गोबर, गोमूत्र, हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट, नीम खली, जैविक कीटनाशक आदि।
4. बाजार से सीधा जुड़ाव
2025 में PKVY को डिजिटल मार्केटिंग से जोड़ा गया है। किसान अपने उत्पाद सीधे ई-मार्केटप्लेस जैसे ONDC या अन्य जैविक पोर्टलों पर बेच सकते हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और किसानों को सीधा फायदा मिलेगा।
परंपरागत कृषि विकास योजना 2025 के नए आयाम।
1. डिजिटल ट्रैकिंग और मैपिंग
अब पूरे क्लस्टर की डिजिटल मैपिंग की जाएगी। कौन सी फसल है, कितनी जमीन पर जैविक खेती हो रही है, किस किसान ने प्रमाणीकरण लिया है – यह सब ऑनलाइन रिकॉर्ड होगा।
2. जलवायु स्मार्ट खेती
2025 की PKVY जलवायु परिवर्तन के हिसाब से भी तैयार की गई है। मसलन, सूखा प्रभावित इलाकों में सूखा सहनशील जैविक फसलें, बाढ़ प्रभावित इलाकों में जलभराव सहने वाली फसलें प्रमोट की जाएंगी।
3. प्रोत्साहन राशि में वृद्धि
इस बार किसानों को मिलने वाली आर्थिक सहायता भी बढ़ा दी गई है। अब प्रति किसान हर साल ₹15,000 तक की आर्थिक मदद मिलेगी। पूरे क्लस्टर को कुल मिलाकर करीब ₹5 लाख तक की मदद मिल सकती है।
परंपरागत कृषि विकास योजना के लाभ।
1. कम लागत, ज्यादा मुनाफा
रासायनिक खेती में किसान बड़ी रकम उर्वरकों और कीटनाशकों पर खर्च करते हैं, जबकि जैविक खेती में ये लागत काफी कम होती है। ऊपर से जैविक उत्पाद की कीमत भी अधिक मिलती है, जिससे किसान का मुनाफा बढ़ता है।
2. मिट्टी की सेहत में सुधार
लगातार रसायनों के इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत खराब हो चुकी है। जैविक खेती में मिट्टी की जैविकता बनी रहती है और उसकी जल धारण क्षमता भी बेहतर होती है।
3. उपभोक्ताओं की मांग पूरी
आज उपभोक्ता भी स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहे हैं। जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) से किसानों को इस बढ़ती मांग का सीधा फायदा मिलेगा।
4. ग्रामीण युवाओं के लिए अवसर
योजना में युवाओं को जैविक खेती से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। किसान उत्पादक संगठन (FPO), जैविक उत्पादों की ब्रांडिंग, पैकेजिंग, डिजिटल मार्केटिंग जैसे कामों में युवा रोजगार पा सकते हैं।
परंपरागत कृषि विकास योजना के सामने चुनौतियां।
1. जागरूकता की कमी
अभी भी बड़ी संख्या में किसान जैविक खेती की सही तकनीकों से परिचित नहीं हैं। इसके लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है।
2. प्रमाणीकरण की जटिलता
कई छोटे किसान प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को जटिल और महंगा मानते हैं। इसके समाधान के लिए PGS-India प्रक्रिया को और सरल और डिजिटल बनाना जरूरी है।
3. बाजार तक पहुंच
जैविक उत्पादों का सही बाजार न मिल पाना भी एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए किसानों को ई-मार्केट, जैविक मेलों, और सीधे ग्राहकों से जोड़ने की रणनीति बनानी होगी।
4. जलवायु परिवर्तन का असर
कुछ इलाकों में लगातार बदलते मौसम के कारण जैविक खेती में जोखिम बढ़ गया है। परंपरागत कृषि विकास योजना लिए जलवायु अनुकूल बीज, फसल विविधता और जल प्रबंधन तकनीकें सिखानी होंगी।
परंपरागत कृषि विकास योजना का क्रियान्वयन।
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) को तीन स्तरों पर लागू किया जाता है:
1. केंद्र सरकारः नीति निर्माण, बजट आवंटन और राष्ट्रीय स्तर की निगरानी।
2. राज्य सरकारः क्लस्टर का चयन, किसानों का पंजीकरण और प्रशिक्षण।.
3. स्थानीय संस्थाएं: कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), पंचायत,FPO, सहकारी समितियां, NGO आदि मिलकर किसानों को तकनीकी और बाजार सहयोग देती हैं।
सफल उदाहरण – महाराष्ट्र का जैविक प्याज क्लस्टर।
महाराष्ट्र के नासिक जिले में PKVY के तहत 2018 में एक प्याज क्लस्टर बनाया गया। किसानों को जैविक उत्पादन की ट्रेनिंग दी गई। स्थानीय गोबर, गोमूत्र और नीम आधारित कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया। PGS प्रमाणन के बाद जैविक प्याज की ब्रांडिंग की गई और उसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचा गया। इससे किसानों को सामान्य प्याज की तुलना में 35% अधिक दाम मिला और उनकी आय में सीधा सुधार हुआ।
परंपरागत कृषि विकास योजना में तकनीक का रोल।
PKVY 2025 में ड्रोन सर्वे, GIS मैपिंग, मोबाइल ऐप आधारित प्रशिक्षण, ई-मार्केट इंटीग्रेशन जैसे आधुनिक तकनीकों का पूरा उपयोग किया जा रहा है, जिससे किसानों को सही जानकारी सही समय पर मिल सके और उनकी उपज को सीधे बाजार तक पहुंचने का रास्ता मिल सके।
परंपरागत कृषि विकास योजना किसानों की भूमिका।
यह योजना पूरी तरह से किसान केंद्रित है। इसमें किसानों को हीरो बनाकर उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। हर क्लस्टर में किसानों की क्लस्टर ग्रुप समिति बनाई जाती है, जो अपने संसाधनों का प्रबंधन खुद करती है, फैसले लेती है और सरकारी एजेंसियों से सीधे संवाद करती है।
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